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हर्बल खेती

इस औषधीय पौधे की खेती करने के लिए सरकार देती है 75 फीसदी सब्सिडी, योजना का लाभ उठाकर किसान बनें मालामाल

इस औषधीय पौधे की खेती करने के लिए सरकार देती है 75 फीसदी सब्सिडी, योजना का लाभ उठाकर किसान बनें मालामाल

देश के साथ दुनिया में इन दिनों औषधीय पौधों की खेती की लगातार मांग बढ़ती जा रही है। इनकी मांग में कोरोना के बाद से और ज्यादा उछाल देखने को मिला है क्योंकि लोग अब इन पौधों की मदद से अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखना चाहते हैं। 

जिसको देखेते हुए केंद्र सरकार ने इस साल 75 हजार हेक्टेयर में औषधीय पौधों की खेती करने का लक्ष्य रखा है। सरकारी अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि पिछले ढ़ाई साल में औषधीय पौधों की मांग में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है जिसके कारण केंद्र सरकार अब औषधीय पौधों की खेती पर फोकस कर रही है। 

किसानों को औषधीय पौधों की खेती की तरफ लाया जाए, इसके लिए सरकार अब सब्सिडी भी प्रदान कर रही है। राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में औषधीय पौधों की खेती पर राज्य सरकारें भी अलग से सब्सिडी प्रदान कर रही हैं।

75 फीसदी सब्सिडी देती है केंद्र सरकार

सरकार ने देश में औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देने के लिए एक योजना चलाई है, जिसे 'राष्ट्रीय आयुष मिशन' का नाम दिया गया है। 

इस योजना के अंतर्गत सरकार  औषधीय पौधों और जड़ी बूटियों के उत्पादन को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इस मिशन के अंतर्गत सरकार 140 जड़ी-बूटियों और हर्बल प्लांट्स की खेती के लिए अलग-अलग सब्सिडी प्रदान कर रही है।

यदि कोई किसान इसकी खेती करना चाहता है और सब्सिडी के लिए आवेदन करता है तो उसे 30 फीसदी से लेकर 75 फीसदी तक की सब्सिडी प्रदान की जाएगी। 

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अगर किसान भाई किसी औषधीय पौधे की खोज रहे हैं तो वह करी पत्ता की खेती कर सकते हैं। करी पत्ता का इस्तेमाल हर घर में मसालों के रूप में किया जाता है। 

इसके साथ ही इसका इस्तेमाल जड़ी-बूटी के तौर पर किया जाता है, साथ ही इससे कई प्रकार की दवाइयां भी बनाई जाती हैं। जैसे वजन घटाने की दवाई, पेट की बीमारी की दवाई और एंफेक्शन की दवाई करी पत्ता से तैयार की जाती है।

इस प्रकार की जलवायु में करें करी पत्ता की खेती

करी पत्ता की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु सबसे बेहतर मानी जाती है। इसकी खेती ऐसी जगह पर करनी चाहिए जहां सीधे तौर पर धूप आती हो। इसकी खेती छायादार जगह पर नहीं करना चाहिए।

करी पत्ता की खेती के लिए इस तरह से करें भूमि तैयार

करी पत्ता की खेती के लिए PH मान 6 से 7 के बीच वाली मिट्टी उपयुक्त होती है। इस खेती में किसान को खेत से उचित जल निकासी की व्यवस्था कर लेनी चाहिए। इसके साथ ही चिकनी काली मिती वाले खेत में इन पौधों की खेती नहीं करना चाहिए। 

सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करना चाहिए, इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल कर दें। इसके बाद हर चार मीटर की दूरी पर पंक्ति में गड्ढे तैयार करें। गड्ढे तैयार करने के बाद बुवाई से 15 दिन पहले गड्ढों में जैविक खाद या गोबर की सड़ी खाद भर दें। 

इसके बाद गड्ढों में सिंचाई कर दें। भूमि बुवाई के लिए तैयार है। करी पत्ता के पौधों की रोपाई वैसे तो सर्दियों को छोड़कर किसी भी मौसम में की जा सकती है। लेकिन मार्च के महीने में इनकी रोपाई करना सर्वोत्तम माना गया है। 

करी पत्ता की बुवाई बीज के साथ-साथ कलम से भी की जा सकती है। अगर किसान बीजों से बुवाई करने का चयन करते हैं तो उन्हें एक एकड़ में बुवाई करने के लिए करी पत्ता के 70 किलो बीजों की जरूरत पड़ेगी। 

यह बीज खेत में किए गए गड्ढों में बोए जाते हैं। इन बीजों को गड्ढों में 4 सेंटीमीटर की गहराई में लगाने के बाद हल्की सिंचाई की जाती है। इसके साथ ही जैविक खाद का भी प्रयोग किया जाता है।

आंवला की खेती से संबंधित संपूर्ण जानकारी

आंवला की खेती से संबंधित संपूर्ण जानकारी

आंवला को सामान्यतः भारतीय गूज़बैरी एवं नेल्ली के नाम से जाना जाता है। आंवला को उसके अंदर मौजूद औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है। इसके फल कई सारी दवाइयां बनाने के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं। आंवला से निर्मित दवाइयों से डायरिया, दांतों में दर्द, अनीमिया, बुखार एवं जख्मों का इलाज किया जाता है। कई प्रकार के शैंपू, बालों में लगाने वाला तेल, डाई, दांतो का पाउडर एवं मुंह पर लगाने वाली क्रीमें तक आंवला से तैयार की जाती हैं। यह एक मुलायम एवं समान शाखाओं वाला पेड़ है, जिसकी औसत उंचाई 8-18 मीटर तक होती है। इसके फूल हरे-पीले रंग के होते हैं एवं यह दो प्रजातियों के होते हैं। नर फूल और मादा फूल। इसके फल हल्के पीले रंग के होते हैं,जिनका व्यास 1.3-1.6 सैं.मी तक होता है। भारत में उत्तर प्रदेश व हिमाचल प्रदेश आंवला के मुख्य उत्पादक राज्य माने जाते हैं।

आंवला की खेती के लिए उपयुक्त मृदा कौन-सी होती है

आंवला सख्त होने के चलते इसको हर प्रकार की मृदा में उत्पादित किया जा सकता है। आंवला को हल्की तेजाबी एवं नमकीन व चूने वाली मृदा में पैदा किया जा सकता है। यदि इसकी खेती समुचित जल निकास वाली एवं उपजाऊ-दोमट मृदा में की जाती है, तो यह बेहतरीन उत्पादन प्रदान करती है। यह खारी मृदा को भी सहयोग्य है।
आंवला की खेती के लिए मृदा का pH 6.5-9.5 होना चाहिए। भारी भूमि पर इसकी खेती करने से बचें।

आंवला की प्रमुख किस्में

बनारसी - यह शीघ्रता से तैयार होने वाली प्रजाति है, जो कि मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर में पक जाती है। इसके फ्लूनों का आकार बढ़ा, कम से कम भार 48 ग्राम, छिल्का मुलायम होता है एवं फल भंडारण योग्य नहीं होते। इस प्रजाति में 1.4% रेशा उपलब्ध होता है। इसका औसतन उत्पादन 120 किलो प्रति पेड़ होती है। कृष्णा - यह भी जल्दी पककर तैयार होने वाली किस्म है, जो कि मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर तक पककर तैयार हो जाती है। इस प्रजाति के फलों का आकार सामान्य से बढ़ा, भार 44.6 ग्राम, छिल्का मुलायम व फल धारियों वाले होते हैं। इस प्रजाति में 1.4% रेशा पाया जाता है। इसका औसतन उत्पादन 123 किलो प्रति पेड़ होता है। एनऐ-9 - यह भी एक जल्दी पकने वाली किस्म है, जो कि मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर में पक जाती है। इसके फल बड़े आकार के, भार 50.3 ग्राम, लम्भाकार, छिल्का मुलायम एवं पतला होता है। इस प्रजाति में रेशे की 0.9% मात्रा उपलब्ध होती है। विटामिन सी की मात्रा सर्वाधिक 100 ग्राम होती है। इससे कैंडीज, जैम एवं जैली इत्यादि बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। एनऐ-10 - यह भी जल्दी पकने वाली प्रजाति है, जो मध्य अक्तूबर से मध्य नवंबर में तैयार हो जाती है। इसके फल मध्यम से बड़े आकार, भार 41.5 ग्राम, छिल्का खुरदरा होता है एवं इसके 6 भिन्न-भिन्न हिस्से होते हैं। इसका गुद्दा हरे-सफेद रंग का होता है व इसमें 1.5 % रेशे की मात्रा उपलब्ध होती है। फ्रांसिस - यह दरमियाने मौसम की फसल है, जो मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर तक की जाती है। इसके फल बड़े आकार के, भार 45.8 ग्राम, और रंग हरा-सफेद होता है। इसमें रेशे की मात्रा लगभग 1.5% होती है। इस प्रजाति को हाथी झूल के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि इसकी शाखाएं लटकी हुई होती हैं। यह भी पढ़ें: किसान इस विदेशी फल की खेती करके मोटा मुनाफा कमा सकते हैं एनऐ-7 - यह दरमियाने मौसम की फसल है, जो मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर तक होती है। इसके फल मध्यम से बड़े आकार के, भार 44 ग्राम, और रंग हरा-सफेद होता है। इसमें रेशे की मात्रा 1.5% मौजूद रहती है। कंचन - यह दरमियाने मौसम की फसल है, जो मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर तक की होती है। इसके फल लघु आकार के, भार 30.2 ग्राम, इसमें रेशे की मात्रा 1.5% होती है। साथ ही, इसमें विटामिन सी की सामान्य मात्रा उपलब्ध होती है। इस प्रजाति का औसतन उत्पादन 121 किलो प्रति रुख होती है। एनऐ-6 - यह दरमियाने मौसम की फसल है, जो मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर तक की होती है। इसके फल मध्यम आकार के, भार 38.8 ग्राम, इसमें रेशे की मात्रा सबसे कम 0.8% होती है। इसमें विटामिन सी की मात्रा 100 ग्राम एवं कम मात्रा में फैनोलिक उपलब्ध होता है। इसे जैम और कैंडीज बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। चकिया - यह विलंभ से पकने वाली प्रजाति है, जो मध्य दिसंबर से मध्य जनवरी में पक जाती है। इसके फल मध्यम आकार के, भार 33.4 ग्राम, इसमें 789 मि.ग्रा. प्रति 100 ग्राम विटामिन सी की मात्रा, 3.4% पैक्टिन और 2% रेशा विघमान होता है। इसे आचार और शुष्क टुकड़े निर्मित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

आंवला की खेती हेतु भूमि की तैयारी

आंवला की खेती के लिए बेहतर ढ़ंग से जोताई एवं जैविक मृदा की जरूरत होती है। मिट्टी को बेहतर ढ़ंग से भुरभुरा करने के लिए बिजाई से पूर्व जमीन की जोताई करें। जैविक खाद जैसे कि रूड़ी की खाद को मृदा में मिलादें। फिर 15×15 सैं.मी. आकार के 2.5 सैं.मी. गहरे नर्सरी बैड तैयार करें।

आंवला की बिजाई की विधि

बिजाई के समय की बात करें तो, आंवला की खेती जुलाई से सितंबर के माह में की जाती है। उदयपुर में इसकी खेती जनवरी से फरवरी माह में की जाती है। वहीं, मई-जून के महीने में कलियों वाले पौधों को 4.5x4.5 मी की दूरी पर ही लगाएं। साथ ही, बीज की गहराई 1 मीटर गहरा वर्गाकार गड्डे खोदें एवं सूरज की रोशनी में 15-20 दिनों के लिए खुला छोड़ दें। बिजाई के ढंग की बात की जाए तो कलियों वाले नए पौधों की पनीरी को मुख्य खेत में लगाया जाता है। साथ ही, बेहतरीन पैदावार के लिए 200 ग्राम बीजों को प्रति एकड़ जमीन में उपयोग करें।

आंवला की फसल हेतु बीज का उपचार

आंवला की फसल को मृदा से उत्पन्न होने वाली बीमारियों एवं कीटों से बचाने के लिए और अच्छे अंकुरन के लिए, बीजों को जिबरैलिक एसिड 200-500 पी पी एम से उपचार करें। रासायनिक उपचार के उपरांत बीजों को हवा में सुखा दें। यह भी पढ़ें: घर पर करें बीजों का उपचार, सस्ती तकनीक से कमाएं अच्छा मुनाफा

आंवला की फसल हेतु खरपतवार नियंत्रण

खेत को नदीन मुक्त करने के लिए समय पर गोड़ाई करें। साथ ही, कटाई एवं छंटाई भी करें। टेढ़ी-मेढ़ी शाखाओं को काट दें एवं केवल 4-5 सीधी टहनियां ही अधिक विकास के लिए रखें। नदीनों का नियंत्रण करने हेतु मलचिंग का तरीका भी काफी प्रभावशाली है। गर्मियों में मलचिंग पौधे के शिखर से 15-10 सैं.मी. के तने तक करें।

आंवला की फसल में सिंचाई किस तरह करें

गर्मियों में सिंचाई 15 दिनों के समयांतराल पर करें एवं सर्दियों में अक्तूबर-दिसंबर के माह में हर दिन चपला सिंचाई द्वारा 25-30 लीटर प्रति वृक्ष डालें। मानसून के मौसम में सिंचाई की जरुरत नहीं होती। फूल निकलने के दौरान सिंचाई ना करें।

आंवला की फसल में हानिकारक कीट एवं उनकी रोकथाम

छाल खाने वाली सुंडी:

  • यह तने और छाल को खाकर काफी क्षति पहुंचाती है।
  • इनकी रोकथाम के लिए क्विनलफॉस 0.01% या फैनवलरेट 0.5% घोल को छेदों में भरें।
  • पित्त वाली सुंडी
  • पित्त वाली सुंडी: यह सुंडी तनेके शिखर में जन्म लेती हैं और सुरंग बना देती हैं।
  • इनकी रोकथाम के लिए डाइमैथोएट 0.03% डालें।

कुंगी:

  • कुंगी पत्तों और फलों पर गोल आकार में लाल रंग के धब्बे पड़ जाते है।
  • इसकी रोकथाम के लिए इंडोफिल एम-45 0.3% को दो बार डालें। पहली सितंबर की शुरूआत में और दूसरी 15 दिनों के उपरांत डालें।

अंदरूनी गलन

  • यह बीमारी प्रमुख रूप से बोरोन की कमी के चलते होती है। इस बीमारी की वजह टिशु भूरे रंग के, बाद में काले रंग के हो जाते हैं।
  • इस बीमारी से संरक्षण के लिए बोरोन 0.6% सितंबर से अक्तूबर के माह में डालें।
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फल का गलना

फल का गलना: इस बीमारी के चलते फलों पर सोजिश पड़ जाती है और रंग परिवर्तित हो जाता है। इसकी रोकथाम के लिए बोरेक्स और क्लोराइड 0.1%- 0.5% डालें।

आंवला की फसल की कटाई

बिजाई से 7-8 वर्ष के उपरांत पौधे उत्पादन देना शुरू कर देते हैं। जब फूल हरे रंग के हो जाएं एवं इनमें विटामिन सी की ज्यादा मात्रा होने पर तो फरवरी के माह में तुड़ाई कर दें। इसकी तुड़ाई वृक्ष को तेज-तेज हिलाकर की जाती है। जब फल पूरी तरह से पक जाते हैं, तो यह हरे पीले रंग के हो जाते हैं। बीजों के लिए पके हुए फूलों का इस्तेमाल किया जाता है।

आंवला की फसल की कटाई के बाद क्या करें

तुड़ाई के उपरांत छंटाई करनी चाहिए। छंटाई के पश्चात फलों को बांस की टोकरी एवं लकड़ी के बक्सों में पैक कर दें। फलों को बर्बाद होने से बचाने के लिए बेहतर ढ़ंग से पैकिंग करें एवं जल्दी से जल्दी खरीदने वाली जगहों पर ले जाएं। आंवले के फलों से बहुत सारे उत्पाद जैसे आंवला पाउडर, चूर्ण, च्यवनप्राश, अरिष्ट, एवं मीठे उत्पाद बनाए जाते हैं।
विश्व प्रसिद्ध सोजत मेहंदी की सबसे ज्यादा खेती कहाँ होती है

विश्व प्रसिद्ध सोजत मेहंदी की सबसे ज्यादा खेती कहाँ होती है

राजस्थान के पाली जनपद में सोजत मेहंदी की सबसे अधिक खेती होती है। यहां के छोटे-बड़े कारोबारी मेहंदी का कारोबार कर के अपने परिवार का भरण-पोषण बेहद अच्छे ढ़ंग से कर रहे हैं। यहां की मेहंदी को जीआई टैग भी प्राप्त हो चुका है। जीआई टैग मिलने के उपरांत यहां के कारोबारियों की जिम्मेदारियां काफी बढ़ गई हैं। अपने कारोबार के प्रति इतने इमानदार हैं, कि आज सोजत मेहंदी पूरी दुनिया की सर्वाधिक विश्वसनीय मेहंदी ब्रांड बन चुका है। मेहंदी का नाम कान में पड़ते ही हमारे दिमाग में हाथों पर तरह-तरह की उकेरी गई डिजाईन उभर आती हैं। वहीं, लाल रंग की मेहंदी के लिए सोजत मेंहदी पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बना चुकी है। इस मेहंदी के साथ महिलाओं का भरोशा इतना मजबूत है, कि जिसकी कोई हद नहीं है। किसी और मेहंदी को लेकर सभी को एक दुविधा सी रहती है, कि ये हाथ में लगाने के उपरांत चटक रंग छोड़ेगा अथवा नहीं। वहीं, कोई दूसरी मेहंदी इतना लाल रंग छोड़ रही है, तो एक दुविधा ये भी रहती है, कि कहीं इसमें कोई रसायन तो नहीं मिलाया गया है। परंतु, सोजत मेहंदी के साथ ऐसा कुछ नहीं है।

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सोजत मेहंदी की दिन-प्रतिदिन बढ़ती विश्वसनीयता

लोगों के बीच इसकी विश्वसनीयता दिन-प्रति दिन बढ़ती ही जा रही है। जानकारी हो, कि राजस्थान के पाली जनपद में सोजत मेहंदी की सबसे ज्यादा खेती होती है। यहां के छोटे-बड़े व्यापारी मेहंदी का व्यापार कर के अपने परिवार का भरण-पोषण काफी अच्छे से कर रहे हैं। यहां की मेहंदी को जीआई टैग भी प्राप्त हो चुका है। जीआई टैग मिलने के बाद यहां के कारोबारियों की जिम्मेदारियां काफी बढ़ गई हैं। वहां के कारोबारी अपने कारोबार के प्रति इतने इमानदार हैं, कि आज सोजात मेहंदी संपूर्ण विश्व का सबसे ज्यादा विश्वसनीय मेहंदी ब्रांड बन चुका है।

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मेहंदी को महिला श्रृंगार का एक महत्वपूर्ण भाग माना जाता है

प्रत्येक धर्म की महिलाओं के श्रृगांर में मेहंदी का अपना विशेष महत्व है। एक तरह से हम कह सकते हैं, कि मेहंदी के बिना किसी भी धर्म की महिलाओं का श्रृंगार अधूरा ही रहता है। विशेष अवसर पर मेहंदी की महत्वता काफी बढ़ जाती है। विशेषकर मांगलिक अवसर पर अथवा तीज-त्योहार में सावन के महीने में महिलाएं हाथों में मेहंदी लगा कजरी गाती हैं। इन समस्त अवसरों पर महिलाओं की पहली पसंद सोजत मेहंदी ही है। क्योंकि, यह पूरी तरह से रसायन मुक्त होता है, जिसकी वजह से हाथों में जो चटक रंग चढ़ता है। सोजत मेहंदी का अपना रंग होता है, बिल्कुल नेचुरल जिससे किसी भी तरह से त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचता है।

महिलाओं की सोजत मेहंदी के व्यापार में हिस्सेदारी

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि आज हर क्षेत्र में महिलाओं की सहभागिता बढ़ती ही जा रही है। महिलाओं का विश्वास जितना आज सोजत मेहंदी पर उतना किसी और मेहंदी पर नहीं होता है। आज बहुत सारी महिलाऐं व्यूटी पार्लर चला रहीं हैं अथवा स्वतंत्र रुप से शादी-विवाह में जाकर मेहंदी लगाती हैं। दरअसल, वे सभी सामान्यतः सोजत मेहंदी ही लगाती हैं। एक आंकड़े के अनुसार, मेहंदी के कारोबार में 80 प्रतिशत महिलाओं की हिस्सेदारी है।